भारत में, जो अभी भी एक-दूसरे से बिलकुल असंगत विचारधाराओं और विचारों के तनावपूर्ण सहअस्तित्व वाला देश है, किसी विचार को चाह कर भी सार्वजनिक दायरे से अपवर्जित करना संभव नहीं है।
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ओम थानवी सवाल उठाते हैं कि ‘ अगर ‘ लोकतंत्र में सभी मंच एकतान हो गए तो जिस वैचारिक और सांस्कृतिक बहुलता को हम अपने लोकतंत्र का असली आधार मानते हैं, वह समाप्त हो जायेगी ' तो अपूर्वानंद कहते हैं ‘ भारत में, जो अब भी एक-दूसरे से बिलकुल असंगत विचारधाराओं और विचारों के तनावपूर्ण सहअस्तित्व वाला देश है, किसी विचार को चाह कर भी सार्वजनिक दायरे से अपवर्जित करना संभव नहीं है.